मानव जीवन में क्यों है नीलकंठ महादेव कांवड़ यात्रा का गहन महत्व ?

सावन में आस्था, भक्ति, श्रद्धा एवं विश्वास से जुड़ी नीलकंठ महादेव की यात्रा दर्शनीय होती है। नीलकंठ महादेव के मार्गों पर केवल बम-बम भोले के उद्घोष तथा कांवड़ियों का केसरिया वेश ही नजर आता है। नीलकंठ महादेव का यह मंदिर उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल जिले में स्थित है। यह मंदिर ऋषिकेश के स्वर्गाश्रम से तेईस किलोमीटर दूर तथा सोलह सौ पचहत्तर मीटर की ऊंचाई पर है।

मानव जीवन में क्यों है नीलकंठ महादेव कांवड़ यात्रा का गहन महत्व ?
Pic of Neelkanth Mahase Temple,Rishikesh
मानव जीवन में क्यों है नीलकंठ महादेव कांवड़ यात्रा का गहन महत्व ?
मानव जीवन में क्यों है नीलकंठ महादेव कांवड़ यात्रा का गहन महत्व ?

नीलकंठ महादेव मंदिर में वैसे तो सदैव बाबा भोलेनाथ के भक्तों की भीड़ लगी रहती है। परंतु सावन के पावन महीने में यहां श्रद्धालुओं का सैलाब उमड़ पड़ता है। ऐसी मान्यता है कि सावन के महीने में भगवान शिव पृथ्वी पर विराजते हैं तथा प्रत्येक शिवलिंग में उनका वास होता है। किंतु सावन में नीलकंठ महादेव के दर्शन तथा जलाभिषेक का अत्यंत ही गहन महत्व है।

दर्शनीय होती है नीलकंठ महादेव की यात्रा

सावन में आस्था, भक्ति, श्रद्धा एवं विश्वास से जुड़ी नीलकंठ महादेव की यात्रा दर्शनीय होती है। नीलकंठ महादेव के मार्गों पर केवल बम-बम भोले के उद्घोष तथा कांवड़ियों का केसरिया वेश ही नजर आता है। कांवड़ यात्रा के समय नीलकंठ महादेव मंदिर के सभी मार्ग केसरिया रंग में रंगे होते हैं। क्योंकि महादेव के दर्शन की लालसा श्रद्धालुओं के सामने पहाड़ की ऊंचाई भी कम कर देती है। तभी तो कांवड़ियों में वृद्ध एवं जवान ही नहीं, बल्कि किशोर तथा बच्चे भी शामिल होते हैं। 

आस्था और भक्ति के अद्भुत रंग

वास्तव में तन-मन यदि भगवान भोलेलाथ के रंग में रंगा हो, तो आस्था भी कई रंगों में सामने आती है। इसीलिए नीलकंठ कांवड़ यात्रा में आस्था के ऐसे ही कई रूप देखने को मिलते हैं। नंगे पांव सैकड़ों मील की पैदल यात्रा हो या आराध्य को प्रसन्न करने के लिए शरीर को किसी अन्य तरह के कष्ट देने की बात। शिव भक्तों में अटूट आस्था का यह नजारा यहां आम है। स्वर्गाश्रम पैदल मार्ग से लेकर नीलकंठ तक करीब बारह किलोमीटर का सफर कुछ श्रद्धालु दंडवत देते हुए भी पूरा करते हैं। श्रद्धालु मनोकामना पूर्ण होने के पश्चात इस प्रकार से भगवान भोलेनाथ को धन्यवाद तथा श्रद्धा अर्पन करते हैं।

कैसे पहुंचें नीलकंठ महादेव के दर? 

नीलकंठ महादेव का यह मंदिर उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल जिले में स्थित है। यह मंदिर ऋषिकेश के स्वर्गाश्रम से तेईस किलोमीटर दूर तथा सोलह सौ पचहत्तर मीटर की ऊंचाई पर है। इस पवित्र स्थल का पुरातन महत्व, प्राकृतिक सौंदर्य एवं मार्ग की एकांतिकता यात्रा को श्रद्धा तथा रोमांच का अद्भुत संगम बना देती है। यदि आप भी नीलकंठ महादेव के दर्शन करने की ईच्छा रखते हैं, उनका आशीर्वाद प्राप्त करना चाहते हैं, तो आप ऋषिकेश से नीलकंठ महादेव मंदिर तक आसानी से पहुंच सकते हैं। ऋषिकेश से जीप अथवा टैक्सी द्वारा नीलकंठ महादेव मंदिर तक करीब पैंतालीस मिनट का सफर है। 

मन मोह लेते हैं यहां के मनोरम दृश्य

ऋषिकेश से नीलंकठ महादेव तक का रास्ता पहाड़ों को चीरता हुआ बड़ा ही मनोरम है। साथ-साथ दिखाई देती है अठखेलियां करती हुई पतित पावनी मां गंगा की धारा। रास्ते में गंगाजी का पावन तट, आगे हिम्बल नदी के किनारे बसे गांवों का मनोरम दृश्य, बलखाती सर्पीली सड़कें, निकटवर्ती घाटियां, पहाड़ी गांव एवं शिखर पर स्थित मंदिर के दृश्य यात्रा को यादगार बनाते हैं। वैसे ऋषिकेश के स्वर्गाश्रम से नीलकंठ महादेव मंदिर जाने का पैदल मार्ग भी है। ग्यारह किलोमीटर का यह मार्ग सीधा चढ़ाई वाला है। अतः जो लोग ट्रैकिंग के शौकीन हैं, वे इस मार्ग से भी जा सकते हैं।  बारह महीने इस स्थल की यात्रा का आनंद लिया जा सकता है।