क्या उन्नाव की बेटी को मिल पाएगा न्याय ?

कोई भी केस जबतक सीबीआई तक पहुंचती है, उससे पहले की जांच एजेंसियां कई साक्ष्यों को मिटा चुकी होती है। स्थानीय पुलिस सीबीआई को पर्याप्त सहयोग नहीं कर पाती हैं। सीबीआई को सबूत सौंपने से पहले उसमें छेड़छाड़ की जाती रही है। स्थानीय नेताओं, जनप्रतिनिधियों और रसूखदार आरोपियों के दबाव में वे कई बार ऐसा करते हैं। मोटी रकम लेकर भी वे न सिर्फ साक्ष्य मिटाते हैं, बल्कि आरोपियों को बचाने का हर संभव प्रयास करते हैं।

क्या उन्नाव की बेटी को मिल पाएगा न्याय ?

उत्तर प्रदेश सरकार ने उन्नाव से बीजेपी विधायक कुलदीप सिंह सेंगर पर बलात्कार का आरोप लगाने वाली पीड़िता की रायबरेली में हुई सड़क दुर्घटना की जांच सीबीआई को सौंप दी गयी है। अब सीबीआई अपने स्तर पर इस पूरे मामले की जांच-पड़ताल करेंगी। संभव है इस मामले के दोषियों को सजा भी दिलवाएगी। हम सभी को उम्मीद भी करनी चाहिए कि देश की सर्वोच्च जांच एंजेसी पूरी इमानदारी और निष्ठा के साथ इस मामले की जांच करेंगी। वह निष्पक्ष जांच कर मामले के तह तक पहुंचेगी और जो भी दोषी होगा, उसपर सख्त कानूनी कार्रवाई करेगी। उन्हें कड़ी से कड़ी सजा दिलवाएगी। उस पर किसी राजनीतिक पार्टी का दबाव नहीं होगा।

आप सभी को लग रहा होगा कि हम सीबीआई की कार्यशैली पर सवाल तो नहीं खड़े कर रहे हैं? सीबीआई पर उंगली तो नहीं उठा रहे हैं? नहीं बिल्कुल नहीं, हम ऐसा नहीं कर रहे हैं। हम सिर्फ आप लोगों को याद दिला रहे हैं कि देश में आज भी कई ऐसे मामले चल रहे हैं, जिसकी जांच सीबीआई वर्षों से कर रही है। वर्षों बीत जाने के बाद भी जांच एजेंसी मामले के तह तक नहीं पहुंच पाई है। कई मामलों की फाइलें बिना किसी नजीते पर पहुंचे बंद कर दी गईं।

वास्तव इसका सबसे बड़ा कारण शुरुआती जांच में बरती जाने वाली लापरवाही ही होती है। कोई भी केस जबतक सीबीआई तक पहुंचती है,उससे पहले की जांच एजेंसियां कई साक्ष्यों को मिटा चुकी होती है। स्थानीय पुलिस सीबीआई को पर्याप्त सहयोग नहीं कर पाती है। सीबीआई को सबूत सौंपने से पहले उसमें छेड़छाड़ की जाती रही है। स्थानीय नेताओं, जनप्रतिनिधियों और रसूखदार आरोपियों के दबाव में वे कई बार ऐसा करते हैं। मोटी रकम लेकर भी वे न सिर्फ साक्ष्य मिटाते हैं, बल्कि आरोपियों को बचाने का हर संभव प्रयास करते हैं।

दरअसल, उन्नाव रेप पीड़िता के मामले में तो सत्ता के शीर्ष पर बैठे ठेकेदारों ने अत्याचार की पराकाष्ठा को पार कर दिया है। निर्लज्जों ने उन्नाव के बलात्कारी विधायक कुलदीप सेंगर को मानों खुली छूट दे रखी है। उस दरिंदे ने पहले तो एक नाबालिग के साथ दुष्कर्म किया, फ़िर उस पर जबरन शादी का दबाव बनाया और फिर उसके खिलाफ आवाज उठाने पर परिवार के एक-एक सदस्य की निर्ममता से हत्या करवा दी। यहां तक कि पीड़िता के वकील को भी नहीं बख्शा।

ऐसे हालात में यह प्रश्न उठना लाजमी है कि भविष्य में ऐसी परिस्थितियों में कौन वकील पीड़ितों के खिलाफ इंसाफ की लड़ाई लड़ेगा? सच्चाई से लड़ने के लिए कौन खड़ा होगा? क्या यही सरकार का बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ अभियान है? क्या यही सरकार की महिला सशक्तिकरण योजना है? क्या इसी को अबला को सबला बनाना कहते हैं? क्या यही नारी शक्ति का सम्मान है? क्या यही सबका साथ-सबका विकास और सबका विश्वास है? क्या यही नई इंडिया है? क्या इसी तरह का हिन्दुस्तान पूरे विश्व में अपनी सफलता का परचम लहराएगा? नहीं, बिल्कुल नहीं। ऐसी करतूतों से देश का नाम रोशन नहीं होगा। भारत का परचम दुनियाभर में नहीं लहराएगा। भारत विश्वगुरु नहीं बनेगा।

उन्नाव मामले में अनेक ऐसे अनुत्तरित सवाल भी हैं,जो आपको झकझोर कर रख देते हैं। आपको सोचने पर मजबूर कर देते हैं। शासन और प्रशासन दोनों को कठघरे में खड़ा करते हैं। मसलन, पीड़िता की गाड़ी को टक्कर मारने वाले ट्रक के नंबर प्लेट से छेड़छाड़ क्यों हुई? पीड़िता के साथ उसके सुरक्षाकर्मी क्यों नहीं थे? पीड़िता के परिवार को जब जान से मारने की धमकी दी गई थी, तो पुलिस से जांच क्यों नहीं की? इस केस में चल रही सीबीआई जांच कहां तक पहुंची? आरोपी विधायक को बीजेपी से निकालने में इतनी देर क्यों की गई? पीड़िता और गवाहों की सुरक्षा में ढिलाई क्यों बरती गई? प्रदेश की पुलिस आखिर किस सबूत पर कह रही है कि यह महज सड़क हादसा है? इसके पीछे किसी का हाथ नहीं है? किसी की साजिश नहीं है?

बलात्कार पीड़ित बेटी के लिए पूरा देश न्याय चाहता था। पर न्याय के जगह क्या हुआ? हत्या का षड्यंत्र? पिता की पुलिस हिरासत में हत्या? अब परिवार खोया और खुद पीड़िता लड़ रही है जिंदगी की जंग। मतलब साफ है कि सभी तरह के संरक्षण बलात्कारी विधायक को प्राप्त है। हैरानी की बात तो यह भी है कि अब इस सड़क हादसे में पीड़ित परिवार के दो सदस्यों की मौत के बाद आरोपी विधायक पर हत्या का मुकदमा दर्ज किया गया है। और भारतीय जनता पार्टी से उसे निकाला गया है। लेकिन इससे क्या फायदा जब कोई गवाह ही न बचेंगे, तो फिर कोर्ट में गवाही कौन देगा?

"यह हादसा नहीं है। सब जानबूझकर कराया गया है। विधायक के लोग ये सब कर रहे हैं। कई बार धमकी दी जा चुकी है। समझौता कराने का दबाव बनाया जा रहा है। विधायक सब काम जेल से ही कर रहे हैं। विधायक खुद भले ही जेल में हैं,लेकिन उनके आदमी बाहर हैं। हमें न्याय चाहिए। हर हाल में न्याय चाहिए।" ये कहना है उन्नाव रेप कांड पीड़िता की मां का। उनका साफ कहना था कि आए दिन उन लोगों के घर के सदस्यों को जेल में डलवाने या फिर हत्या करा देने की धमकी दी जाती है।

दरअसल, ये पूरा मामला किसी थ्रिलर फ़िल्म की कहानी से कम नहीं है। उन्नाव के बांगरमऊ से बीजेपी विधायक कुलदीप सेंगर पर एक नाब़ालिग लड़की ने जून 2017 में बलात्कार करने का आरोप लगाया। बार-बार शिकायत के बावजूद पीड़ित लड़की की एफ़आईआर पुलिस ने नहीं लिखी, जिसके बाद लड़की के परिवार वालों ने कोर्ट का सहारा लिया। इस दौरान विधायक के परिजन उनपर केस वापस लेने का दबाव बनाते रहे। न्याय के लिए पीड़िता उन्नाव पुलिस के हर अधिकारी के पास गई, लेकिन कहीं कोई सुनवाई नहीं हुई। पीड़िता के मुताबिक़ पिछले साल अप्रैल में विधायक के भाई अतुल सिंह और उनके साथियों ने उसके पिता को मारा-पीटा और बाद में पुलिस ने उसके पिता के ही ख़िलाफ़ एफ़आईआर दर्ज करके उसे जेल भेज दिया।

आख़िरकार परेशान होकर पीड़ित लड़की अपनी माँ के साथ पिछले साल ही आठ अप्रैल को लखनऊ में मुख्यमंत्री आवास पर आई और अपने ऊपर तेल छिड़ककर आत्महत्या की कोशिश की। लेकिन उसे बचा लिया गया। अगले ही दिन पीड़ित लड़की के पिता की पुलिस हिरासत में मौत हो गई और ये मामला सुर्ख़ियों में आ गया। चार महीने बाद इस घटना यानी पुलिस हिरासत में पिटाई और मारपीट के चश्मदीद और मामले में मुख्य गवाह की रहस्यमय परिस्थितियों में मौत हो गई।

इस मामले के सुर्खियों में आने और चौतरफ़ा दबाव के बावजूद बीजेपी विधायक के ख़िलाफ़ कोई कार्रवाई नहीं हुई थी। लेकिन जब कोर्ट ने स्वयं संज्ञान लेते हुए सरकार को घेरा और उसके बाद सीबीआई जांच शुरू हुई तब जाकर पिछले साल 13 अप्रैल को कुलदीप सेंगर की गिरफ़्तारी हुई। इस मामले में गठित एसआईटी की रिपोर्ट आने के बाद पुलिस ने आईपीसी की धारा 363, 366, 376 और 506 के तहत मुक़दमा दर्ज किया। चूंकि घटना के वक़्त पीड़िता नाबालिग थी, इसलिए पॉक्सो एक्ट के तहत भी मामला दर्ज किया गया।