ईरान व कश्मीर : नई पहल जरुरी

ज्यों ही ईरानी सेनापति कासिम सुलेमानी की हत्या हुई, मैंने लिखा और टीवी चैनलों पर कहा था कि भारत को अमेरिका और ईरान के नेताओं से तुरंत बात करनी चाहिए। मुझे खुशी है कि दूसरे ही दिन डॉ. जयशंकर (विदेश मंत्री) ने दोनों विदेश मंत्रियों और अब नरेंद्र मोदी ने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से बात की। हमारी सरकार के बयान में यह बात छिपाई गई है कि इन दोनों के बीच ईरान पर कोई बात हुई है लेकिन अमेरिकी प्रवक्ता ने उसे स्पष्ट कर दिया है।

ईरान व कश्मीर : नई पहल जरुरी
GFX of Americal President Donald Trump and Irani Army Commander Wuasim Sulemani

ज्यों ही ईरानी सेनापति कासिम सुलेमानी की हत्या हुई, मैंने लिखा और टीवी चैनलों पर कहा था कि भारत को अमेरिका और ईरान के नेताओं से तुरंत बात करनी चाहिए। मुझे खुशी है कि दूसरे ही दिन डॉ. जयशंकर (विदेश मंत्री) ने दोनों विदेश मंत्रियों और अब नरेंद्र मोदी ने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से बात की। हमारी सरकार के बयान में यह बात छिपाई गई है कि इन दोनों के बीच ईरान पर कोई बात हुई है लेकिन अमेरिकी प्रवक्ता ने उसे स्पष्ट कर दिया है। मैं कहता हूं कि मोदी को चाहिए कि वे ईरान के सर्वोच्च नेता अली खामेनई से भी बात करें,क्योंकि अमेरिका को जो करना था, उसने कर दिया लेकिन अब ईरान कोई ऐसा कदम न उठा ले, जिससे दक्षिण एशिया में विनाश-लीला शुरु हो जाए।

इस समय भारत सरकार कश्मीर के हालात दिखाने के लिए यूरोपीय और पश्चिम एशिया के राजदूतों को कश्मीर ले जा रही है,यह अच्छी बात है लेकिन वे इस बात पर जोर दे रहे हैं कि उन्हें लोगों से मिलने-जुलने की काफी छूट मिलनी चाहिए। कुछ हफ्ते पहले जैसे यूरोपीय संघ के सांसद कश्मीर का फेरा लगा आए थे,उस तरह की यात्रा के लिए कुछ राजदूत तैयार नहीं हैं। मैं तो कहता हूं कि बांग्लादेश, पाकिस्तान, अफगानिस्तान,मालदीव और ईरान के राजदूतों को भी वहां ले जाया जाना चाहिए।

अब कश्मीर में बर्फबारी इतनी जबर्दस्त हो रही है कि किसी प्रदर्शन, तोड़फोड़ या घेराव की संभावना नहीं है। यदि फारुख अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती-जैसे नेताओं की नज़रबंदी को भी खत्म कर दिया जाए तो कोई संकट पैदा नहीं होने वाला है। बेहतर तो यह होगा कि कुछ गैर-सरकारी और गैर-भाजपाई नेताओं और बुद्धिजीवियों को इन नजरबंद कश्मीरी नेताओं से पहले संवाद करने दिया जाए। ये कश्मीरी नेता और ये विपक्षी नेता भाजपा-विरोधी तो हो सकते हैं लेकिन ये राष्ट्रद्रोही नहीं हैं। अब पांच महिने बीत गए हैं, कश्मीर के मुंह पर अब भी हम ताला जड़े हुए हैं। अब उसे खुलना चाहिए। सरकार ने थोड़ी-बहुत ढील जरुर दी है लेकिन वह काफी नहीं है।

सरकार को यह डर हो सकता है कि इसके नागरिकता संशोधन कानून के विरुद्ध देश के नौजवान पहले ही हर विश्वविद्यालय में प्रदर्शन कर रहे हैं तो कहीं कश्मीर की लपटें इस आग को और नहीं भड़का दें। इस कानून पर लोगों को उल्टी पट्टी पढ़ाने पर सरकार अपनी शक्ति बर्बाद करने की बजाय इसमें संशोधन करे और कश्मीर को खोले तो उसे शांतिपूर्वक रचनात्मक काम करने का अवसर मिल सकता है। गिरती हुई अर्थव्यवस्था को संभालने पर वह अपना ध्यान केंद्रित कर सकती है।

( ये लेखक के अपने विचार हैं )