शीर्ष अदालत का नागरिकता संशोधन कानून-2019 पर रोक लगाने से इनकार,याचिकाकर्ताओं को हाईकोर्ट जाने की सलाह,केंद्र के खिलाफ नोटिस जारी

देश की सर्वोच्च अदालत ने नागरिकता संशोधन कानून-2019 पर रोक लगाने से साफ इनकार कर दिया है। सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे, न्यायमूर्ति बीआर गवई और न्यायमूर्ति सूर्य कांत की खंडपीठ ने नागरिकता संशोधन कानून पर रोक लगाने से इनकार तो किया,लेकिन इस पूरे मामले में केंद्र सरकार के खिलाफ नोटिस भी जारी किया है।

शीर्ष अदालत का नागरिकता संशोधन कानून-2019 पर रोक लगाने से इनकार,याचिकाकर्ताओं को हाईकोर्ट जाने की सलाह,केंद्र के खिलाफ नोटिस जारी
Pic Supreme Court of India
शीर्ष अदालत का नागरिकता संशोधन कानून-2019 पर रोक लगाने से इनकार,याचिकाकर्ताओं को हाईकोर्ट जाने की सलाह,केंद्र के खिलाफ नोटिस जारी
शीर्ष अदालत का नागरिकता संशोधन कानून-2019 पर रोक लगाने से इनकार,याचिकाकर्ताओं को हाईकोर्ट जाने की सलाह,केंद्र के खिलाफ नोटिस जारी
शीर्ष अदालत का नागरिकता संशोधन कानून-2019 पर रोक लगाने से इनकार,याचिकाकर्ताओं को हाईकोर्ट जाने की सलाह,केंद्र के खिलाफ नोटिस जारी

देश की सर्वोच्च अदालत ने नागरिकता संशोधन कानून-2019 पर रोक लगाने से साफ इनकार कर दिया है। सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे, न्यायमूर्ति बीआर गवई और न्यायमूर्ति सूर्य कांत की खंडपीठ ने नागरिकता संशोधन कानून पर रोक लगाने से इनकार तो किया,लेकिन इस पूरे मामले में केंद्र सरकार के खिलाफ नोटिस भी जारी किया है। न्यायालय का कहना है कि वह 21 जनवरी को इस मामले पर सुनवाई करेगा। नागरिकता संशोधन कानून को चुनौती देने वाली 59 याचिकाएं बुधवार को सर्वोच्च न्यायालय में सुनवाई के लिए लगी थीं।

याचिका दाखिल करने वालों में सांसद जयराम रमेश, महुआ मोइत्रा और असदुद्दीन ओवैसी शामिल हैं। इस कानून के विरोध में हुए प्रदर्शनों, हिंसा और फिर पुलिस कार्रवाई के मामले में दखल देने से अदालत ने यह कहते हुए इनकार कर दिया कि हम इन याचिकाओं को क्यों सुनें? आप लोग हाईकोर्ट क्यों नहीं जाते?'इतना ही नहीं अदालत ने छात्रों के खिलाफ पुलिस कार्रवाई पर रोक लगाने का भी कोई आदेश नहीं दिया और ना ही मामले की जांच के लिए सेवानिवृत्त न्यायाधीश की अध्यक्षता में कोई जांच कमेटी गठित की।

सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि घटनाएं अलग-अलग जगहों की हैं। ऐसे में एक जांच कमेटी गठित करना ठीक नहीं रहेगा। याचिकाकर्ता संबंधित हाईकोर्ट जाएं और हाईकोर्ट पक्षकारों और सरकार को सुनकर जांच कमेटी गठित करने के बारे में उचित आदेश दे सकते हैं। ये आदेश प्रधान न्यायाधीश एसए बोबडे, जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस सूर्य कांत की पीठ ने दिल्ली के जामिया मिल्लिया इस्लामिया विश्वविद्यालय और अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में पुलिस कार्रवाई का मामला उठाने वाली याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान दिए।

चीफ जस्टिस बोबडे ने अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल से कहा, ‘‘वकील अश्विनी उपाध्याय ने एक अनौपचारिक निवेदन किया है कि वे जामिया मिलिया इस्लामिया जाकर छात्रों को नागरिकता कानून के बारे में समझाना चाहते हैं। क्या आप कानून को लोगों को बताने की अनुमति देते हैं।’’ इस पर वेणुगोपाल ने कहा कि सरकार को कानून को प्रकाशित करने का अधिकार है।


नागरिकता संशोधन बिल पर राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने 12 दिसंबर को हस्ताक्षर कर दिए थे। कानून के मुताबिक, 2014 तक पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश से प्रताड़ित होकर आए गैर-मुस्लिमों (बौद्ध, जैन, ईसाई, पारसी) को नागरिकता मिल सकेगी।

याचिकाओं के मुताबिक- नागरिकता देने के लिए धर्म को आधार नहीं बनाया जा सकता, जबकि नया कानून संविधान के आधारभूत ढांचे का उल्लंघन करता है। नया कानून अवैध रूप से आए शरणार्थियों को धर्म के आधार पर नागरिकता देने की बात कहता है। यह जीवन और समानता के मूल अधिकार का उल्लंघन है। याचिकाओं में यह भी कहा गया है कि कानून से देश का धर्मनिरपेक्ष का सिद्धांत भी प्रभावित होगा। सरकार का दायित्व है कि वह सभी धर्मों के लोगों से समान व्यवहार करे।

याचिकाकर्ताओं की ओर से इससे पहले पेश वरिष्ठ वकील इंद्रा जयसिंह और कोलिन गोंसाल्विस ने अदालत से कहा कि इस मामले के दो मुख्य बिंदु हैं। पहला यह की पुलिस विश्वविद्यालय अथॉरिटी की इजाजत के बगैर विश्वविद्यालय में घुसी और फिर उसने छात्रों पर हिंसक कार्रवाई की। छात्रों के खिलाफ केस दर्ज हुए हैं, उन्हें गिरफ्तार किया गया। दूसरी बात कि घायल छात्रों को चिकित्सा सुविधा भी उपलब्ध नहीं कराई जा रही है।