Corona Update : कोरोना महामारी के खिलाफ राजनीतिक दलों का सराहनीय कदम, प्रधानमंत्री के साथ खड़ा है पूरा विपक्ष
लॉकडाउन बहुत जल्दी में लागू करना पड़ा था,तब ऐसी सहमति बनाने के लिए वक्त नहीं था। उस समय बहुत तेजी से फैसले का दबाव था,जिसके कारण कई ऐसी चीजें छूट गईं और सरकार की आलोचना भी हुई। लेकिन अब जब चंद रोज का समय बाकी है,तब सरकार सबकी सलाह का ध्यान रख रही है। कुछ छोटी-मोटी चीजों को छोड़ दें, तो इस संकट के समय विपक्षी दल भी पूरी तरह सरकार के फैसलों के साथ खड़े दिखाई दिए हैं।
देश में जारी कोरोना कहर के बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संसद के दोनों सदनों में सभी दलों के नेताओं के साथ जो बैठक की,उसके कई आयाम हैं, बल्कि कई मायने भी हैं। वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए हुई यह बैठक ऐसे समय में हुई है,जब देश लॉकडाउन की तीन सप्ताह की अवधि में से दो सप्ताह का समय गुजार चुका है। लेकिन इस बीच कोरोना वायरस के संक्रमण का खतरा उस तरह से कम नहीं हो सका,जैसी इससे उम्मीद की जा रही थी।
लॉकडाउन शुरूआत में तो सही रास्ते पर जाता दिख रहा था, लेकिन तबलीगी जमात का मामला सामने आने के बाद स्थिति भले ही पूरी तरह हाथ से न निकली हो,लेकिन इससे हालात बिगड़े तो जरूर हैं। सरकार के सामने इस समय सवाल यह है कि लॉकडाउन का क्या किया जाए? इसे ऐसे ही कुछ समय के लिए और जारी रहने दिया जाए या कुछ हद तक कम या फिर पूरी तरह से खत्म किया जाए?
आमतौर पर विशेषज्ञों की राय यही आ रही है कि इसे खत्म करने से हालात काफी बिगड़ सकते हैं। अंत में जो भी होगा, इन्हीं विशेषज्ञों की राय को ध्यान में रखकर किया जाएगा, लेकिन कोई भी फैसला केंद्र सरकार के लिए आसान नहीं होगा। ऐसे कठिन समय में एक बड़ी जरूरत यह होती है कि बड़े फैसलों में राजनीतिक आम सहमति बनाई जाए।
लॉकडाउन बहुत जल्दी में लागू करना पड़ा था,तब ऐसी सहमति बनाने के लिए वक्त नहीं था। उस समय बहुत तेजी से फैसले का दबाव था,जिसके कारण कई ऐसी चीजें छूट गईं और सरकार की आलोचना भी हुई। लेकिन अब जब चंद रोज का समय बाकी है,तब सरकार सबकी सलाह का ध्यान रख रही है। कुछ छोटी-मोटी चीजों को छोड़ दें, तो इस संकट के समय विपक्षी दल भी पूरी तरह सरकार के फैसलों के साथ खड़े दिखाई दिए हैं।
दलगत राजनीति जिसके लिए बदनाम है, वह प्रवृत्ति इन दिनों देखने के लिए नहीं मिल रहा है। घर के बाहर दीया मोमवत्आती और अन्य लाइट्स जलाने की प्रधानमंत्री की अपील पर उनकी कुछ आलोचनाएं जरूर की गई थीं,लेकिन शायद वह बहुत बड़ी बात नहीं है। इस दौरान सरकार के किसी अहम फैसले का खुला विरोध किसी विपक्षी नेता ने नहीं किया। यही वजह है कि कुछ ही दिन पहले प्रधानमंत्री ने विपक्ष के तकरीबन सभी बड़े नेताओं को फोन करके उनके सुझाव मांगे थे।
कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के सुझाव तो सार्वजनिक भी हुए हैं। मुमकिन है,बाकी विपक्षी नेताओं ने भी भेजे हों, लेकिन उन्हें अभी सार्वजनिक न किया गया हो। हालांकि यह भी कहा जा रहा है कि प्रधानमंत्री 11 अप्रैल, शनिवार को एक भार फिर से सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों के साथ टेली कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए बात करेंगे और उसके बाद ही लॉकडाउन को लेकर कोई फैसला होगा।
देशवासियों के लिए फिलहाल हमारे लिए अहम यही है कि ऐसे बड़े फैसलों के लिए चौतरफा राजनीतिक आम सहमति बनाने की कोशिश काफी सक्रिय ढंग से चल रही है। किसी भी युद्ध की तरह ही महामारियों के लिए भी यह जरूरी होता है कि पूरा देश एकजुट होकर इस लड़ाई को लड़े। सभी सियासी दल मौजूदा वक्त की नजाकत को अच्छी तरह समझ रहे हैं।
भारत में जिस तरह की राजनीतिक परिपक्वता है, उसके चलते यह बहुत ज्यादा कठिन भी नहीं है। सभी दलों के एक साथ आने का अर्थ होता है, देश की पूरी राजनीतिक ऊर्जा का एक साथ इस्तेमाल। महामारी ने यह तो बता ही दिया है कि भारत के पास इसकी पूरी क्षमता है। इस युद्ध की सबसे जरूरी शर्त हमने पूरी कर दी है।
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