असली वाला “मौत का सौदागर” : “गांवों में भी बोतलबन्द पानी....पढिए अपनी बर्बादी की कहानी”

अगर कोई देश अपनी आधी से अधिक आबादी को पीने का पानी मुहैय्या नहीं करा सकती, तो क्या वैसे देश को फेल्ड स्टेट मान लेना चाहिए? अगर जवाब नकारात्मक है तो भी ऐसा होना तय है। बस समय थोड़ा और अधिक लग जाए। ये अलग बात है कि हम शुतुरमुर्ग बने हुए है। लेकिन, गढ्ढे में सिर धंसा लेने से शुतुरमुर्ग कहां बच पाता है?

असली वाला “मौत का सौदागर” : “गांवों में भी बोतलबन्द पानी....पढिए अपनी बर्बादी की कहानी”
तस्वीर: बक्सर के एक गांव में चल रहा बॉटल्ड वाटर प्लांट

शशि शेखर :

एक सरल सवाल है। अगर कोई देश अपनी आधी से अधिक आबादी को पीने का पानी मुहैय्या नहीं करा सकती, तो क्या वैसे देश को फेल्ड स्टेट मान लेना चाहिए? अगर जवाब नकारात्मक है तो भी ऐसा होना तय है। बस समय थोड़ा और अधिक लग जाए। ये अलग बात है कि हम शुतुरमुर्ग बने हुए है। लेकिन, गढ्ढे में सिर धंसा लेने से शुतुरमुर्ग कहां बच पाता है?

पिछले साल मुजफ्फरपुर में अपने गांव, ससुराल और ननिहाल गया था। तीनों गांवों के अधिकांश घरों में बोतलबन्द पानी (20 लीटर का जार) की सप्लाई हो रही है। ऑटो से कंपनी वाले पानी पहुंचा रहे है। गांव के चौक पर भी पानी का 20 लीटर का जार उपलब्ध है। ऐसे सभी घर, जो पैसा खर्च कर सकते है, यही पानी पी रहे हैं। अपने गांव, जो मुजफ्फरपुर शहर से सिर्फ 2-3 किलोमीटर है, वहां की एक गरीब बस्ती में देखा कि एक आदमी रिक्शानुमा पानी का टैंकर ले कर पानी बेच रहा है सस्ते दर पर। मैंने अपनी आंखों से जो देखा, जो थोडी बहुत बातचीत हुई, उसी के आधार पर लिख रहा हूं। कोई ठोस आंकड़ा अभी मेरे पास नहीं है। हां, इससे एक ट्रेंड का पता जरूर चलता है।

इस बारे में जब, मैंने अपने एक रिश्तेदार से बात की, जो खुद बोतलबन्द पानी ले रहे है, तो उनका कहना था कि पिछले भूकंप के बाद, जमीन के भीतर प्लेट खिसकने से मुजफ्फरपुर का पानी जहरीला हो गया है, इसलिए हमलोग खरीद कर पानी पी रहे हैं। अब ये कितना सच है मुझे नहीं मालूम। ऐसी कोई बात होती तो खबर जरूर बनती। लेकिन, ये एक साजिश हो सकता है। हो सकता है, पानी के सौदागरों ने जानबूझ कर इस इलाके में ऐसी अफवाहें उडाई हो।

मैंने अपने उक्त रिश्तेदार से पूछा कि ये बताइए कि इस पानी में क्या खास है। उनका जवाब था कि इसका टीडीएस कम है, इसलिए यह अच्छा है। जब मैंने उनसे कहा कि क्या आपने इस पानी में फ्लोराइड, आर्सेनिक आदि की भी जांच की है, तो उनका जवाब था, नहीं। वैसे आर्सेनिक मुक्त पानी बनाने के लिए कम से कम 70 लाख के मशीन लगानी होगी। इतना खर्च ये आरओ वाटर बिजनेस वाले करते नहीं, न कर सकते हैं। यानी, कम टीडीएस के नाम पर, पैसा दे कर भी लोग अशुद्ध पानी ही पी रहे है। लेकिन, हम शुतुरमुर्ग हैं। सो, कम टीडीएस का पानी पी कर सोचते है कि हमें कुछ नहीं होने वाला।

अब बात, मुजफ्फरपुर से आगे की। कानपुर में एक नाव में बैठ जाइए और बिहार की अंतिम सीमा तक एक यात्रा कीजिए। सोनभद्र, मिर्जापुर, भोजपुर समेत गंगा के दोनों किनारों के गांवों पर एक अध्ययन कीजिए। पता लगेगा कि गांव के गांव फ्लोराइड युक्त पानी पी-पी कर असमय बूढे/ गंभीर रूप से बीमार हो चुके हैं। भोजपुर में एक गांव ऐसा है, जहां बच्चे भी अन्धा पैदा हो रहे हैं। कुछेक गांव ऐसे मिलेंगे, जहां हर घर कैंसर पीडित है। पानी में आर्सेनिक की जांच इतना कठिन है, कि उस पर अब तक सरकार की तरफ से कुछ भी ठोस कहा नहीं जा सका है। ये अलग बात है कि कुछ गैर सरकारी रिपोर्टों के मुताबिक गंगा के मैदानी इलाकों में आर्सेनिक की मात्रा बढती जा रही है। ध्यान दीजिए, धान की खेती में काफी पानी का इस्तेमाल होता है, इस वजह से पानी का आर्सेनिक अब आपके चावल में भी मिल गया है, जिसे चावल से निकाल पाना करीब-करीब नामुमकिन है। आर्सेनिक का क्या दुष्प्रभाव है, गूगल कर लीजिए।
2008 में मैंने खुद एक आरटीआई डाली थी और गंगा के पानी की गुणवत्ता के बारे में सवाल पूछे थे। जवाब से पता चला, कन्नौज, कानपुर, इलाहाबाद और बनारस तक पहुंचते-पहुंचते गंगा की हालत यह हो जाती है कि इसका पानी पीने तो दूर, नहाने लायक़ भी नहीं रह जाता। बायोकेमिकल ऑक्सीजन डिमांड (बीओडी) एक जांच प्रक्रिया है, जिससे पानी की गुणवत्ता और उसमें ऑक्सीजन की मात्रा का पता चलता है। गंगाजल के बीओडी जांच के मुताबिक़, कन्नौज, कानपुर, इलाहाबाद और बनारस में बीओडी की मात्रा 3.20 मिलीग्राम/लीटर से लेकर 16.5 मिलीग्राम/लीटर तक है, जबकि यह मात्रा 3.0 मिलीग्राम/लीटर से थोड़ी भी ज़्यादा नहीं होनी चाहिए। हो सकता है, पिछले 10 सालों में गंगा स्वच्छ हो गई हो। वैसे मुझे इसकी उम्मीद नहीं है।

सवाल है कि क्या पानी बेचने वाले आसमान से पानी लाते हैं या अपने बाप की जमीन से पानी निकालते हैं। पहले इसी कॉरपोरेट ने पानी को दूषित कर दिया। अब साफ पानी के नाम पर हमारा ही पानी हमको बेच रहा है। एक दिन ये हमारे लिए सांसें भी बेचेंगे और हम शुतुरमुर्ग इसे भी विकास का पैमाना मान कर सांसें खरीदेंगे। ऑक्सीजन बार तो खुल ही चुके हैं। आपके पास पैसा है और अगर आप ये सोच रहे है कि आपातकाल में दिल्ली-मुंबई से भाग कर अपने गांव चले जाएंगे, तो याद रखिए, आपका गांव भी कॉरपोरेट साजिश से बच नहीं पाया है। वहां भी आपको पानी खरीद कर पीना होगा, वहां भी आपको हवा खरीद कर सांसे लेनी होंगी। मेरी बातों पर यकीन मत कीजिए। थोडा गूगल कीजिए। जल नीति, नीति आयोग की कॉपी पढिए। कम से कम वाटर फूटप्रिंट के बारे में ही जानिए। थोडा वर्चुअल वाटर व्यापार की साजिश समझिए।

तो, जनाब. तैयार हो जाइए। अपनी बर्बादी का जश्न मनाने वाले हम वाहिद मुल्क हैं। समय ज्यादा नहीं लगेगा। फिलहाल, बकराधिकार की बातें कीजिए। एकाध प्रोफेसर को और पीट लीजिए। कुछेक और महिलाओं को निर्वस्त्र कर दीजिए। ये सब कर के अपनी भावनाएं सहला लीजिए। मस्त रहिए। आगे तो पस्त होना ही है...त्रस्त होना ही है। क्योंकि, हम भारत के लोग ही भारत को एक दिन फेल्ड स्टेट बना देंगे।