आस्था, भक्ति एवं सनातन संस्कृति का अद्भुत प्रमाण है श्री गणेशोत्सव
भाद्रपद मास की चतुर्थी से प्रारंभ होकर अनंत चतुर्दशी तक चलने वाला दस दिवसीय गणेशोत्सव के दौरान संपूर्ण वातावरण गणपति बप्पा के जयकारों से गुंजायमान रहता है। इन दस दिनों के दौरान विघ्नहर्ता की संपूर्ण विधि-विधान के साथ पूजन-अर्चन किया जाता है। श्रीगणपति की कृपा से भक्तों पर सौभाग्य,समृद्धि एवं सुखों की बारिश होती है।
देश और दुनिया भर में 2 सितंबर से गणेशोत्सव का शुभारंभ हो रहा है। चारों ओर श्रद्धाए भक्ति, हर्ष एवं उल्लास का माहौल है। घर-घर गांव-ण्गांव और शहर-शहर में भगवान श्रीगणेश की पूजा-उपासना की जा रही है। भक्त विघ्नविनाशक की भक्ति में लीन हैं। भाद्रपद मास की चतुर्थी से प्रारंभ होकर अनंत चतुर्दशी तक चलने वाला दस दिवसीय गणेशोत्सव के दौरान संपूर्ण वातावरण गणपति बप्पा के जयकारों से गुंजायमान रहता है। इन दस दिनों के दौरान विघ्नहर्ता की संपूर्ण विधि-विधान के साथ पूजन-अर्चन किया जाता है। श्रीगणपति की कृपा से भक्तों पर सौभाग्य,समृद्धि एवं सुखों की बारिश होती है।
सिद्धि विनायक स्वरूप की होती है पूजा
भाद्रपद मास में शुक्ल की चतुर्थी तिथि को श्री गणेश जी के सिद्धि विनायक स्वरूप की पूजा होती है। शास्त्रानुसार इसी दिन भगवान शिव और माता पार्वती के पुत्र भगवान श्रीगणेश दोपहर में अवतरित हुए थे। अतः यह गणेश चतुर्थी विशेष फलदायी होती है। पूरे देश में यह त्योहार गणेशोत्सव के नाम से प्रसिद्ध है। गणेशोत्व के दौरान देश में वैदिक सनातन पूजा पद्धति से अर्चना के साथ-साथ अनेक लोक सांस्कृतिक रंगारंग कार्यक्रम भी होते हैं। नृत्य नाटिका, रंगोली, चित्रकला प्रतियोगिता, हल्दी उत्सव आदि का आयोजन किया जाता है। भक्त गजानन की भक्ति में लीन होते हैं।
मानव जीवन में श्री गणेश का है गहन महत्व
भारतीय धर्म-संस्कृति में भगवान श्रीगणेश का गहन महत्व है। हर नए कार्य, हर बाधा या विघ्न के समय बड़ी उम्मीद से भगवान श्री गणेश को याद किया जाता है। एक दंत,दयावंत की कृपा से समस्त दुःखों, समस्याओं और संतापों से छुटकारा पाया जाता है। श्रीगणेश जी को देवसमाज में सर्वोच्च स्थान प्राप्त है। इनका वाहन चूहा है। इनकी दो पत्नियां भी हैं, जिन्हें रिद्धि और सिद्धि के नाम से जाना जाता है। भगवान श्रीगणेश का सर्वप्रिय भोग मोदक यानी लड्डू है। भगवान श्री गणेश की उपासना से उपासकों के सभी मनोरथ पूर्ण होते हैं।
ऐसे करें गणपति की पूजा
गणेशोत्सव के दौरान प्रातःकाल नित्यकर्मों से निवृत्त होकर स्नानोपरांत श्श्मम सर्वकर्मसिद्धये सिद्धिविनायक पूजनमहं करिष्येश् मंत्र से संकल्प लें। सोने, तांबे, मिट्टी अथवा गोबर से श्रीगणेश की प्रतिमा बनाएं। प्रतिमा को कोरे कलश में जल भरकर मुंह पर कोरा कपड़ा बांधकर उस पर स्थापित करें। पुष्प, धूप, दीप, कपूर, रोली, सिंदूर, मौली, चंदन एवं मोदक से पूजन और आरती करें। आरती के उपरांत दक्षिणा अर्पित करके इक्कीस लड्डुओं का भोग लगाएं। पांच लड्डू गणेशजी की प्रतिमा के पास रखकर शेष ब्राह्मणों में बांट दें। भगवान श्रीगणेश को दूर्वा अवश्य चढ़ाना चाहिए।
संपूर्ण मनोकामना पूर्ण करते हैं श्रीगणेश
भगवान श्रीगणेश का देवताओं में असाधारण महत्व है। श्रीगणेश शब्द ओंकार के प्रतीक हैं। श्रीगणेश उमाण्महेश्वर के पुत्र हैं। ये गणों के ईश श्रीगणेश हैं। स्वास्तिक रूप हैं। इनके अनंत नाम हैं। श्रीगणेश विघ्नहर्ता हैं। इनकी उपासना से समस्त कार्य निर्विघ्न रूप से पूर्ण हो जाते हैं। विद्या, विवाह,संतान, धन, सिद्धि, आनंद एवं प्रसन्नता की प्राप्ति होती है। श्रीगणेश ऋद्धि-सिद्धि तथा बुद्धि प्रदान करने वाले हैं। प्रसन्न होने पर श्रीगणेश अपनी पत्नियों ऋद्धि-सिद्धि एवं पुत्र शुभ-लाभ के साथ भक्तों के घर में निवास करते हैं।
प्रथम पूज्य हैं श्रीगणेश
भगवान श्रीगणेश भारतीय संस्कृति के अभिन्न अंग हैं। प्राचीन काल से ही निर्विघ्न कार्य संपन्न करने हेतु गणपति की पूजा सर्वप्रथम की जाती है। भक्तिण्पूर्वक भगवान गणेश जी की पूजा जो भी करता हैए उसके सम्मुख विघ्न कभी नहीं आते। यही कारण है कि विदेशों में भी गणेश चतुर्थी यानी गणेशोत्सव श्रद्धा, भक्ति एवं उल्लास के साथ मनाया जाता है। देवों में प्रथमपूज्य विघ्नहर्ता श्री भगवान गणेश के प्रति भक्तों की अनंत आस्था है। दुनियाभर के कई देशों में भी गणपति की पूजा-अर्चना भक्ति-भाव के साथ की जाती है। मारीशस में तो इस दिन सार्वजनिक अवकाश रहता है
आस्था एवं भक्ति का अद्भुत प्रमाण है गणेशोत्सव
दस दिवसीय गणेशोत्सव आस्था एवं भक्ति का अद्भुत प्रमाण है। भगवान श्रीगणेश की प्रतिमा घरों,मंदिरों,चौक-्चौराहों तथा पंडालों में सााज-श्रृंगार कर स्थापित किए जाते हैं। भगवान श्रीगणेश का नित्य विधिपूर्वक पूजन-अर्चन किया जाता है। भगवान श्री गणेश को फल, फूल और मोदक अर्पित किए जाते हैं। ग्यारहवें दिन गणेश प्रतिमा को धूमधाम विसर्जन कर दिया जाता है। भजन-कीर्तन और सांस्कृतिक आयोजनों के बाद वस्त्र से ढंका कलश और दक्षिणा आचार्य को समर्पित करके गणेशजी की प्रतिमा को विसर्जन करना उत्तम विधान माना गया है।
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