सुप्रीम कोर्ट ने की राहुल गांधी की माफी मंजूर, केंद्र सरकार को दी बड़ी राहत, राफेल मामले में दाखिल पुनर्विचार याचिकाएं की खारिज
कांग्रेस नेता राहुल गांधी की ओर से राफेल पर सुप्रीम कोर्ट के बयान को गलत तरह से पेश करने के मामले पर बेंच ने कहा कि हम उनकी माफी स्वीकार करते हैं। उन्हें आगे सावधानी बरतने की जरूरत है। दरअसल, अदालत ने राफेल डील के लीक दस्तावेजों को सबूत मानकर मामले की दोबारा सुनवाई के लिए तैयार हो गया था। इस पर राहुल गांघी ने कहा था कि कोर्ट ने भी मान लिया है कि चौकीदार ने ही चोरी की है।
देश की शीर्ष अदालत ने केंद्र सरकार को बड़ी राहत दी है। अदालत ने राफेल मामले में दायर पुनर्विचार याचिकाओं को खारिज कर दिया है। मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई,जस्टिस एसके कौल और जस्टिस केएम जोसेफ की बेंच ने 14 दिसंबर 2018 को सुनाए गए फैसले को बरकरार रखा है। शीर्ष अदालत ने कहा कि हमें इस मामले में एफआईआर का आदेश देने या जांच बैठाने की जरूरत महसूस नहीं हुई है।
शीर्ष अदालत ने पिछले साल के फैसले में राफेल डील को तय प्रक्रिया के तहत बताया था और सरकार को क्लीनचिट दी थी। अदालत ने पुनर्विचार याचिका पर सुनवाई के बाद 10 मई को फैसला सुरक्षित रख लिया था। वकील प्रशांत भूषण, पूर्व मंत्री यशवंत सिन्हा और अरुण शौरी समेत अन्य लोगों ने राफेल डील में भ्रष्टाचार जांच की मांग करते हुए याचिका दायर की थी।
कांग्रेस नेता राहुल गांधी की ओर से राफेल पर सुप्रीम कोर्ट के बयान को गलत तरह से पेश करने के मामले पर बेंच ने कहा कि हम उनकी माफी स्वीकार करते हैं। उन्हें आगे सावधानी बरतने की जरूरत है। दरअसल, अदालत ने राफेल डील के लीक दस्तावेजों को सबूत मानकर मामले की दोबारा सुनवाई के लिए तैयार हो गया था। इस पर राहुल गांघी ने कहा था कि कोर्ट ने भी मान लिया है कि चौकीदार ने ही चोरी की है।
बीजेपी सांसद मीनाक्षी लेखी ने राहुल गांधी के खिलाफ अवमानना का मामला दर्ज कराया, जिस पर राहुल गांधी ने जवाब में कहा कि सर्वोच्च अदालत ने अपने फैसले में ‘चौकीदार चोर है’ टिप्पणी नहीं की थी। यह सब चुनाव प्रचार के दौरान गर्म माहौल में उनके मुंह से निकल गया था।
केंद्र सरकार ने 13 मई को राफेल से जुड़े दस्तावेज लीक होने के मामले में शीर्ष अदालत में हलफनामा दाखिल किया था। इसमें केंद्र ने दलील दी कि राफेल मामले में जिन दस्तावेजों को आधार बनाकर पुनर्विचार याचिका दाखिल की गई है, वे भारतीय सुरक्षा के लिए काफी संवेदनशील हैं। इनके सार्वजनिक होने से देश की सुरक्षा खतरे में पड़ी है।
केंद्र सरकार ने कहा था कि याचिकाकर्ता यशवंत सिन्हा, अरुण शौरी, प्रशांत भूषण संवेदनशील जानकारी लीक करने के दोषी हैं। याचिकाकर्ताओं ने याचिका के साथ जो दस्तावेज लगाए हैं वे प्रसारित हुए हैं, जो अब देश के दुश्मन और विरोधियों के लिए भी मौजूद हैं।
दरअसल, राफेल फाइटर जेट डील भारत और फ्रांस की सरकारों के बीच सितंबर 2016 में हुई। इसके तहत भारतीय वायुसेना को 36 अत्याधुनिक लड़ाकू विमान मिलेंगे। बताया जाता है कि यह सौदा 7.8 करोड़ यूरो यानी करीब 58,000 करोड़ रुपए का है। पर कांग्रेस का दावा है कि यूपीए सरकार के दौरान एक राफेल फाइटर जेट की कीमत 600 करोड़ रुपए तय की गई थी,जबकि नरेंद्र मोदी सरकार के दौरान एक राफेल करीब 1600 करोड़ रुपए का पड़ेगा।
आपको बताते चलें कि यूपीए सरकार के दौरान सिर्फ विमान खरीदना तय हुआ था। इसके स्पेयर पार्ट्स, हैंगर्स, ट्रेनिंग सिम्युलेटर्स, मिसाइल या हथियार खरीदने का कोई प्रावधान उस मसौदे में शामिल नहीं था। फाइटर जेट्स का मेंटेनेंस बेहद महंगा होता है। नरेंद्र मोदी सरकार ने जो डील की है, उसमें इन सभी बातों को शामिल किया गया है। राफेल के साथ मेटिओर और स्कैल्प जैसी दुनिया की सबसे खतरनाक मिसाइलें भी मिलेंगी।
मेटिओर 100 किलोमीटर तक मार कर सकती है, जबकि स्कैल्प 300 किमी तक सटीक निशाना साध सकती है। कांग्रेस की आपत्ति है कि इस डील में टेक्नोलॉजी ट्रांसफर का प्रावधान नहीं है। पार्टी इसमें एक कंपनी विशेष को फायदा पहुंचाने का आरोप भी लगाती है।
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