क्या 14 अप्रैल को लॉकडाउन हटाना जल्दबाजी होगी?
देश में लॉकडाउन के दो सप्ताह पूरे हो चुके हैं और इसके खत्म होने में अब बस एक हफ्ता बचा है और इस समय हर किसी के दिमाग में यही सवाल है कि एक सप्ताह बाद क्या होगा? क्या इसके बाद लॉकडाउन की पाबंदियों को विदा कर दिया जाएगा? क्या सब कुछ पहले की ही तरह सामान्य हो जाएगा? शायद नहीं और शायद 24 अप्रैल को लॉकडाउन खत्म करना जल्दबाजी भी होगी।
देश में लॉकडाउन के दो सप्ताह पूरे हो चुके हैं और इसके खत्म होने में अब बस एक हफ्ता बचा है और इस समय हर किसी के दिमाग में यही सवाल है कि एक सप्ताह बाद क्या होगा? क्या इसके बाद लॉकडाउन की पाबंदियों को विदा कर दिया जाएगा? क्या सब कुछ पहले की ही तरह सामान्य हो जाएगा?
यह ठीक है कि सब चाहते हैं कि लॉकडाउन जल्द से जल्द खत्म हो, इसकी वजह से जो समस्याएं आ रही हैं, वे किसी से छिपी नहीं हैं। चंद रोज पहले ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों के साथ बैठक में यह अनुरोध किया था कि राज्य सरकारें इस लॉकडाउन के बाद की रणनीति तय करें।
इसका एक अर्थ यह निकाला गया था कि पिछली बार जिस तरह से राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन की घोषणा केंद्रीय स्तर पर की गई थी, इस बार वैसा कुछ नहीं होगा, बल्कि इसे तय करने की ज्मिेदारी इस बार राज्यों को सौंपी जा सकती है।
लॉकडाउन को वैसे भी लागू करने का काम राज्यों के हवाले ही होता है। एक विकल्प यह भी चर्चा में आया था, जिसपर कई राज्यों ने अमल भी किया है वह यह कि उन सघन इलाकों को सील कर दिया जाए, जहां कोरोना वायरस का संक्रमण ज्यादा है। लेकिन इसके अपने जोखिम हैं, क्योंकि जहां यह सघन नहीं है, लॉकडाउन हटने से वहां समस्या बढ़ सकती है।
इस बीच ‘इंडियन कौंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च’ ने कुछ हद तक स्थिति को स्पष्ट किया है कि लॉकडाउन पूरी तरह खत्म हो जाएगा या जारी रहेगा, अभी यह कहने का वक्त नहीं आया है। कौंसिल के प्रमुख वैज्ञानिक रमन गंगा खेडकर ने कहा है कि यह काफी कुछ इस बात पर निर्भर करेगा कि अगले चार-पांच दिनों में हालात किस तरफ मुड़ते हैं?
यह साफ है कि कुछ मामलों में सख्ती बढ़ाने के साथ ही कुछ मामलों में ढील देने की तत्काल जरूरत है। खासकर रबी की फसल तैयार है और उसे मंडियों में लाने का वक्त शुरू हो चुका है। पहले इसकी सरकारी खरीद एक अप्रैल से शुरू होनी थी, लेकिन राज्यों ने इसकी तारीख बढ़ाकर लॉकडाउन के बाद तय कर दी थी।
यह एक ऐसा मामला है, जिसे बहुत ज्यादा नहीं बढ़ाया जा सकता। लेकिन मंडियों को संक्रमण मुक्त रखना और वहां सोशल डिस्टेंसिंग को लागू करना काफी कठिन साबित होने वाला है। पर यह ऐसा काम है, जिसे अब शायद और नहीं टाला जा सकता।
इस समय भारत ही नहीं, दुनिया के तमाम देश लॉकडाउन के ऐसे ही सवालों से जूझ रहे हैं। एक उदाहरण जर्मनी का है, जहां इस समय हर रोज कोरोना वायरस के लिए 50 हजार टेस्ट हो रहे हैं, वहां के विशेषज्ञों का कहना है कि ऐसे टेस्ट की संख्या को तेजी से बढ़ाकर ही लॉकडाउन से बाहर आने के बारे में सोचा जा सकता है, जबकि भारत में हम अभी प्रतिदिन 20 हजार टेस्ट का लक्ष्य हासिल करने की कोशिश में ही जुटे हैं।
यह सच है कि भारत में हालात कई दूसरे देशों की तरह नहीं बिगड़े, तो इसमें काफी हद तक योगदान लॉकडाउन का भी है, जिसे समय रहते लागू कर दिया गया। लेकिन यह भी सच है कि दो तिहाई लॉकडाउन बीत जाने के बाद भी हम अभी खतरे से पूरी तरह नहीं निकल सके हैं, बल्कि कई मामलों में तो खतरा बढ़ता हुआ दिख रहा है। जाहिर है, लॉकडाउन की जरूरत और उसे हटाने के दबावों के बीच स्पष्ट रणनीति की जरूरत है। प्राथमिकता सिर्फ एक है कि देश को महामारी से बचाया जाए।
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