भारतीय राजनीति में सेक्यूलरिज्म बनाम फर्जी सेक्यूलरिज्म

भारतीय राजनीति में सेक्यूलरिज्म बनाम फर्जी सेक्यूलरिज्म
भारतीय राजनीति में सेक्यूलरिज्म बनाम फर्जी सेक्यूलरिज्म

देश में आम चुनाव संपन्न हो चुके हैं। भारतीय जनता पार्टी की अगुवाई वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन को प्रचंड बहुमत प्राप्त हुआ। देश की जनता ने एक बार फिर से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर विश्वास जताया है। नरेंद्र मोदी 30 मई को दोबारा प्रधानमंत्री पद की शपथ लेंगे। अगले पांच वर्षों तक देश की बागडोर उनके हाथों में होगा। हमें उम्मीद करनी चाहिए कि अगले पांच वर्षों में हमारे देश का उतरोत्तर विकास होगा। देश की जनता खुशहाल होगी। सभी धर्म और समुदाय के लोग मिल-जुलकर रहेंगे। चारों ओर अमन-चैन होगा। धर्म और संप्रदाय के नाम पर कोई फसाद नहीं होगा। धार्मिक उनमाद नहीं फैलाए जाएंगे।

दरअसल, मेरा ऐसी उम्मीद करना लाजमी भी है,क्योंकि इस आम चुनाव में देश की जनता ने जाति और धर्म से ऊपर उठकर बीजेपी के पक्ष में वोट किया है। हर वर्ग, हर समुदाय और हर तबके का व्यक्ति नरेंद्र मोदी में विश्वास जताया है। देश की जनता ने नरेंद्र मोदी जी पर विश्वास जताया। उन्हें 2014 से भी बड़ी जीत दिलवाई है। वो भी तब, जबकि कई राजनीतिक दलों के नेताओं की ओर से इस चुनाव को भी धार्मिक रंग देने की कोशिश की गई। धार्मिक भावनाओं को भड़काने का प्रयास किया गया। संप्रदायिकता के बीज बोने की कोशिश की गई। यह एक विडंबना और पाखंड ही है कि हमारे देश में तकरीबन सभी पार्टिया धर्म और जाति के आधार पर वोट मांगती हैं। राजनीतिक दल भारतीय संविधान में वर्णित पंथनिरपेक्षता यानी Secularism पर नास्तिक और सांप्रदायिक दोनों तरह के लोग भ्रम फैलाते हैं। इस मसले को जोर शोर से उठाया जाता है। लेकिन इसके वास्त्विक भाव को कम ही लोग जानते और समझते हैं। 

वरिष्ठ पत्रकार अखिलेश शर्मा के मुताबिक भारतीय राजनीति का फ़र्ज़ी सेक्यूलरिज्म क्या था? मुस्लिमों को एकमुश्त वोट बैंक और हिंदुओं को जातियों में बाँट कर चलना ही फर्जी सेक्यूलरिज्म रहा है। पार्टियां अपने सहुलियत के हिसाब से राजनीति करती रही हैं ।
अभी तक जीत का फ़ार्मूला रहा है:-

कॉंग्रेस: मुस्लिम+ब्राह्मण+ दलित
सपा: मुस्लिम+यादव
बसपा: मुस्लिम+ब्राह्मण+जाटव
राजद: मुस्लिम+यादव
लेकिन अब ये फार्मूले ध्वस्त हो गए। 

भारत में पंथनिरपेक्षता इससे पहले नहीं थी,ऐसा नहीं है। लेकिन संविधान की प्रस्तावना में Secularism शब्द के रूप में इसका उल्लेख नहीं था। आपको ये जानकार आश्चर्य होगा कि संविधान सभा ने लंबी बहस के वावजूद भी मूल संविधान में धर्मनिरपेक्षता शब्द को जगह नहीं दी थी। अंग्रेजी शब्दकोश में Secularism का अर्थ है, वो संवैधानिक सिद्धांत या नियम, जिसके आधार पर सरकार और उसके कर्मचारी सभी धर्मों के प्रति समान और सम्मान का भाव रखते हैं तथा धर्म और धर्मगुरुओं से दूरी बनाए रखते हैं, वह Secularism’ कहलाता है।

गौर करने वाली बात यह है कि सन 1976 में हुए भारतीय संविधान के बयालीसवें संशोधन में संसद को सर्वोच्चता प्रदान की गई और मौलिक अधिकारों पर निर्देशक सिद्धांतों को प्रधानता दी गई। इसमें 10 मौलिक कर्तव्यों को भी जोड़ा गया। समाजवादी (Socialist), धर्मनिरपेक्ष (Secularism) और राष्ट्र की एकता और अखंडता’ जैसे शब्दं को संविधान की प्रस्तावना में जोड़ा गया।

आप सभी को यहां पर यह बताना भी जरूरी है कि भारतीय संविधान में पंथनिरपेक्ष शब्द का मतलब धर्म से उदासीनता नहीं, बल्कि भेदभाव रहित तथा पंथ आधारित पक्षपात से रहित सर्वधर्म समभाव के साथ परस्पर सहयोग से है। नास्तिकों का भी पंथ मानवतावाद होता है। 

रामायण में भी लिखा गया है- "परहित सरिस धरम नहीं भाई, परपीड़ा सम नहीं अधमाई।" अर्थात दूसरों की मदद करने से बड़ा कोई धर्म नहीं है और दूसरों को कष्ट देने से बड़ा कोई अधर्म नहीं है। इसिलिए भारतीय संविधान में वर्णित पंथनिरपेक्ष शब्द को पक्षपात रहित सर्वधर्म समभाव के साथ परस्पर सहयोग के अर्थ में ही लिया जाना चाहिए। पंथनिरपेक्षता, धर्मनिरपेक्षता से कहीं अधिक उपयुक्त शब्द है। यह किसी राष्ट्र में रहने वाले विभिन्न पंथों से सरकार की तटस्थता या समरूपता को दर्शाता है। 

12 धर्म, लगभग 122 भाषाएं और करीब 1600 से ज्यादा बोलियों वाले देश भारत में पंथनिरपेक्षता का मतलब है सर्व धर्म समभाव का योग। पंथनिरपेक्षता का मतलब है सांप्रदायिक पक्षपात से दूर रहना। पंथनिरपेक्षता का मतलब है परस्पर प्रेम। पंथनिरपेक्षता का मतलब है परस्पर सहयोग।